Saturday, December 1, 2018

देशभक्त । स्वामी भक्त । वीर दुर्गादास राठौड़

परिचय- 

            मारवाड़ के वीर दुर्गादास राठौड़ मैं देश भक्ति तथा स्वामी भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। दुर्गा दास का जन्म 1638 ईस्वी में हुआ था उनके पिता आसकरण दुनेरा के जागीरदार थे। पत्नी से नाराजगी के कारण आसकरण ने दुर्गादास व पत्नी को अकेला छोड़ दिया। दुर्गादास अपनी मां के साथ लूणा के गांव में रहने लगे। शिवाजी की मां की तरह दुर्गादास की मां ने भी उनमें मारवाड़ के प्रति देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भर दी।

अजीत सिंह की रक्षा-

  • 1678 ईस्वी में जमरूद में जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु हो गई। 19 फरवरी 1679 को जसवंत सिंह की दो विधवा रानियों ने दो पुत्रों को जन्म दिया- अजीत सिंह एवं दलथम्मन। शीघ्र ही दल थम्मन की मृत्यु हो गई औरंगजेब मारवाड़ के उत्तराधिकार के प्रश्न पर हस्तक्षेप करके वहां पर इंद्र सिंह को अपना कठपुतली शासक बनाना चाहता था। उसने जोधपुर पर अधिकार कर लिया और चाटुकार इंद्र सिंह को जोधपुर दे दिया औरंगजेब के आदेश से जसवंत सिंह की दोनों रानियों तथा अजीत सिंह को दिल्ली लाया गया। राठौङ सरदारों ने औरंगजेब से प्रार्थना की की अजीत सिंह को मारवाड़ का शासक घोषित किया जाए परंतु औरंगजेब ने यह कहा कि यदि अजीत सिंह इस्लाम धर्म ग्रहण कर ले, तो उसे जोधपुर का शासक बनाया जा सकता है। परंतु राठौङ सरदारों ने इस अपमानजनक शर्त को मानने से इनकार कर दिया। औरंगजेब ने बालक अजीत सिंह तथा रानियों को दिल्ली में ही रखने का आदेश दिया। राठौङ सरदारों को औरंगजेब की नियत में खोट दिखाई दे रही थी वे चाहते थे कि अजीत सिंह राज परिवार सहित जोधपुर पहुंचे जाए।
  • वीर दुर्गादास की योजना अनुसार सरदारों ने संकल्प किया कि अपने प्राणों की आहुति देकर भी वे राठौड़ राज परिवार को सकुशल मारवाड़ पहुंचाएंगे। योजना अनुसार वीर दुर्गादास अपने सहयोगी राठौर सरदारों के साथ रूप सिंह की हवेली से बड़ी चालाकी से अजीत सिंह को लेकर मारवाड़ की ओर निकल गए। औरंगजेब ने दुर्गादास का पीछा करने के लिए एक सैनिक टुकड़ी भेजी। राठौड़ रणछोड़ दास ने इस मुगल सैनिक टुकड़ी से संघर्ष किया और अपने सहयोगीयों के साथ मारा गया। तब तक दुर्गादास काफी आगे निकल गए दुर्गादास ने शाही दल को रोके रखा जब तक राजपरिवार आगे बढ़ चुका था। संध्या समय होते होते शत्रुओं से बचकर दुर्गादास अजीत सिंह से जा मिला शाही सेना दिल्ली लौट गई। इस प्रकार दुर्गादास राठौड़ की सूझबूझ एवं राठौड़ सरदारों के बलिदान के बल पर अजीत सिंह सुरक्षित जोधपुर पहुंच गया

मारवाड़ मुगल संघर्ष में दुर्गादास राठौर की भूमिका-    

  • मारवाङमुगल संघर्ष में भी दुर्गादास राठौड़ की महत्वपूर्ण भूमिका रही। दुर्गादास ने अपनी कूटनीति के माध्यम से तथा मेवाड़ के सहयोग से औरंगजेब के पुत्र अकबर को बादशाह बनाने का प्रलोभन देकर अपनी और कर लिया। अकबर ने मारवाड़ के नाडोल नगर में स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया। परंतु औरंगजेब  ने अपनी कूटनीतिक योग्यता से अकबर के विद्रोह को दबा दिया। फिर भी राठौड़ों ने मुगलों के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखा।
  •  1707 में औरंगजेब की मृत्यु हो गई इस स्थिति का लाभ उठाकर अजीत सिंह ने मारवाड़ पर आक्रमण कर जोधपुर पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार दुर्गादास ने स्वामि-भक्ति तथा सैनिक योग्यता के बल पर अजीत सिंह को मारवाड़ का शासक बना दिया।


 दुर्गा दास की धार्मिक सहिष्णुता-

  • दुर्गादास राठौड़ ने अकबर के पुत्र बुलंद अख्तर तथा पुत्री सफमुतिन्निसा को अपने पास रख कर धार्मिक सहिष्णुता का परिचय दिया। उनके लिए मुस्लिम शिक्षा दीक्षा की व्यवस्था की ओर ससम्मान उन्हें औरंगजेब के पास पहुंचाया।

अजीत सिंह और दुर्गादास में मतभेद-

  •  मारवाड़ में अजीत सिंह से भी अधिक सम्मान दुर्गादास राठौड़ का था। सरदारों की परिषद भी अजीत सिंह से अधिक दुर्गादास की सलाह का आदर करती थी। इससे अजीत सिंह दुर्गादास से ईर्ष्या करने लगा और वह दुर्गादास से नाराज रहने लगा। अजीत सिंह दुर्गादास की युद्ध नीति के अच्छे सुझावों का भी विरोध करने लगा। यदि अजीत सिंह दुर्गादास के सिद्धांतों पर चलता तो मारवाड़ की गौरवपूर्ण स्थिति होती।

दुर्गादास का मेवाड़ आगमन- 

  • अजीत सिंह के नाराज हो जाने पर दुर्गादास जोधपुर छोड़कर उदयपुर (मेवाड़) चला गया यहां मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह ने दुर्गादास को विजयपुर की जागीर प्रदान कर दी और ₹500 प्रतिदिन देने की व्यवस्था की। दुर्गादास को रामपुर का हाकिम भी बना दिया गया। 22 नवंबर, 1718 को 80 वर्ष की आयु में उज्जैन में दुर्गा दास का देहांत हो गया।

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