Monday, January 7, 2019

राजस्थान के प्रमुख संत और सम्प्रदाय-

राजस्थान के प्रमुख संत और सम्प्रदाय-

राजस्थान में भक्ति आन्दोलन धन्ना जाट लाए।
राजस्थान में भक्ति आन्दोलन के प्रमुख संत, संत पीपा थे।

भक्ति आंदोलन

 14 -15 वीं शताब्दी में सम्पुर्ण भारत में भक्ति के द्वारा मोक्ष प्राप्त करने के लिए जो आंदोलन चलाया उसे भक्ति आंदोलन के नाम से जाना जाता है।

 भक्ति के साधन: 

संतों ने मोक्ष प्राप्ति के तीन साधन बताए हैं-

1. कर्म- सर्वप्रथम उल्लेख गीता में

2. ज्ञान- सर्वप्रथम उल्लेख शंकराचार्य के दर्शन में

3. भक्ति- सर्वप्रथम उल्लेख श्वेतास्वर उपनिषद में

प्रमुख संत:

 धन्ना जाट का जन्म धुनन गांव (टोंक)  में सन् 1415 ईस्वी में हुआ था। उनके पिता का नाम रामेश्वर जाट था। इन्होंने बनारस में रामानंद जी से दीक्षा ली एवं उनके आदेश के अनुसार भक्ति को फैलाया। राजस्थान में सर्वप्रथम भक्ति को लाने का श्रेय इन्हीं को दिया जाता है। धन्ना जाट के भक्ति गीत सिखों के आदिग्रंथ (गुरु ग्रंथ साहिब) में संग्रहित थे। संत धन्ना की याद में धुनन गांव (टोंक) में मेले का आयोजन होता है। इस मेले में पंजाबी भक्त भाग लेते हैं। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ का नाम 'संत धन्ना जी री आरती' है।

संत पीपा: 

संत पीपा का जन्म 1425 ईस्वी में गागरोन का दुर्ग (झालावाड़) में हुआ। इनके पिता खींची शासक कड़ावा राव थे। इनकी माता का नाम लक्ष्मीवती था। इनकी पत्नी का नाम सीता सेलखड़ी था।
यह पिता की मृत्यु के बाद गागरोन के शासक बने इस दौरान गागरोन किले का शासन प्रबंध संभालते हुए इन्होंने दिल्ली के शासक फिरोज तुगलक को पराजित किया। कालांतर में बनारस गए और वहां रामानंद जी के शिष्य बन गए। उनका मूल नाम प्रताप सिंह था। संत रामानंद ने उन्हें दीक्षा देने के पश्चात आदेश दिया कि वे राजपाट का परित्याग करें और साधु संतों की सेवा करते हुए भक्ति की धारा को फैलाने का कार्य करें। अर्थात रामानंद ने प्रताप सिंह को कहा भक्ति रूपी रस को तू भी पी और दूसरों को भी पिला। इसी कारण जनमानस में प्रताप सिंह पीपा के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
संत पीपा भक्ति करते हुए द्वारका गए जहां पर उन्होंने हरि के दर्शन किए।
संत पीपा ने राजपाट का परित्याग कर दिया और अपनी पत्नी के साथ समदड़ी बाड़मेर गांव में आ गए और भक्ति करने लगे। पति पत्नी दोनों ने भीख न लेकर के कपड़े सील कर अपना गुजारा चलाते थे। इसलिए कालांतर में दर्जियों के आराध्य देव कहलाए। संत पीपा ने अपना अंतिम समय टोंक जिले के टोडा नामक स्थान पर एक गुफा में व्यतीत किया। वर्तमान में यह गुफा संत पीपा की गुफा कहलाती है।

संत दादू दयाल :

संत दादू दयाल का जन्म 1544 ई. में अहमदाबाद में हुआ। पालन पोषण संत लोधी राम ने किया जो इनके प्रथम गुरु थे। इनके आध्यात्मिक गुरु का नाम ब्रह्मानंद था। संत दादू 1567-68 ई. मैं राजस्थान में सांभर नामक स्थान पर आए। उन्होंने यहाँ धुनी का काम प्रारंभ कर दिया। आमेर नरेश भगवंत दास इनसे अत्यधिक प्रभावित हुए थे। कालांतर में संत दादू को आमेर के शासक मानसिंह प्रथम ने अपना गुरु बनाया। मुगल सम्राट अकबर ने 1585 में संत दादू दयाल को फतेहपुर सिकरी आमंत्रित किया, जहां इबादत खाने में ज्ञान चर्चा की। संत दादू ने पुत्र गोद लेने की परंपरा पर चालू की। कबीर के समान दादू ने भी गुरु के महत्व पर अत्यधिक बल दिया तथा बताया कि वैवाहिक जीवन भक्ति में कहीं पर भी बाधक नहीं है। दादू को राजस्थान का कबीर कहा जाता है। संत दादू में दादू पंथ की स्थापना की।

दादू दयाल के प्रमुख ग्रंथ:

दादू दयाल री वाणी- इसमें 8000 छंद है 
दादू दयाल रा दूहा- सदुकड़ी भाषा में जनसंवाद 

दादू की विशेषता:

 दादू ने उपदेश जनसामान्य की भाषा में दिये (सदुकड़ी भाषा) 
दादू की मृत्यु के बाद दादू पंथ 5 भाग में हो गया-
1. खालसा 
2. खाकी 
3. उत्तरादे 
4. वीरक्त
5. नागा-सैनिक संगठन- सूरंदास 
इन का पूजा स्थल दादू द्वारा एवं सत्संग स्थल अलख दरीबा कहलाता है।
 दादू दयाल के 5 पूज्य स्थल जो पंचतीर्थ कहलाते हैं-
1. सांभर
2. भेराणा
3. नरेना
4. आमेर 
5. कल्याणपुर

No comments:

Post a Comment