यह बात लगभग 500 साल पहले की है, उस समय नागौर में दो चौधरी रहा करते थे नाम था गोपाल जी और धर्मा जी ।गोपाल जी जायल गांव के बासट कॉम के जाट और धर्माजी खियाला गांव के बिडियासर कॉम के जाट थे।
दोनों चौधरी दिल्ली के सुल्तानों के लिए किसानों से लगान संग्रहण का कार्य करते थे और हर वर्ष सुल्तान के पास दिल्ली पहुंचाते थे। इस वर्ष भी दोनों चौधरी लगान की सारी रकम ऊंटों पर लादकर सुबह जल्दी जायल से दिल्ली के लिए रवाना हुए शाम होने तक दोनों जायल से लगभग 55-60 कोस दूर जयपुर के पास हरमाड़ा गांव पहुंचे दोनों बहुत थक गए थे और ऊंटों को भी आराम करवाना था इसलिए दोनों हरमाड़ा गांव की सरहद पर कुए के पास रात्रि विश्राम के लिए रुक गए।
हरमाड़ा गांव में इसके अगले दिन गुर्जर जाति की लिछमा नामक औरत की पुत्री का विवाह था लेकिन लिछमा के पीहर में उसका अपना कोई भाई बहन या परिवार वाला नहीं था इसलिए विवाह की पवित्र रस्म भात या मायरा भरने वाला कोई नहीं था। लिछमा की पुत्री के विवाह के साथ साथ उसकी देवरानी और जेठानी की पुत्रियों का भी विवाह था तो लिछमा की सास, देवरानी, जेठानी और अन्य परिवार की औरतों ने लिछमा पर तंज कसे और कहा की भात बिना कोई विवाह संपूर्ण हुआ है क्या हमारे ऐसे दुर्भाग्य है कि तेरे जैसी बहू हमारे परिवार में आई ऐसा दिन दिखाने से पहले मर क्यों नहीं गई इसी तरह सारी बातें सुनकर लिछमा के मन में मरने का ख्याल आ गया और वह पानी लाने का बहाना बनाकर कुए पर चली गई और उसी कुएं पर बैठकर जोर जोर से रोने लगी। उसी कुएं पर दोनों चौधरियों ने अपना डेरा जमा रखा था औरत के रोने की आवाज सुनकर दोनों चौधरी लिछमा के पास गए और बोले अरे बहन ऐसी कौन सी नौबत आई जो तुम इतनी रात गए कुए पर बैठकर रो रही है फिर लिछमा ने दोनों चौधरियों को अपनी पूरी कहानी सुनाई।
चौधरियों ने कहा बस इतनी सी बात और तुम जान देने चली आई आज से हम तेरे धर्म के भाई हैं तू हमारे राखी बांध और हम तेरे भात भरेंगे लिछमा थोड़ी सी विचलित हुई फिर चौधरियों ने कहा लिछमा चीर फाड़ और बांध कलाई पर कल सुबह तेरे भाई भात भरेंगे इस प्रकार चौधरियों की जबान से आश्वस्त होकर लिछमा घर चली गई।
फिर चौधरियों ने सोचा भात भरने का तो बोल दिया और पैसा कहां से लाएंगे पैसा तो सारा बादशाह का है वह भी छोटी मोटी रकम नहीं पूरी 22000 अशर्फियां और इनमें इन में हेरफेर करना अपनी मौत को बुलावा देना है लेकिन दोनों ने लिछमा को जुबान दे दी थी उन्होंने सोचा की "जुबान देकर नट जाएं, इससे अच्छा है कि कट जाएं" भात तो भरेंगे ही बादशाह जो करेगा देखा जाएगा।
दोनों जयपुर की ओर रवाना हो गए रात में ही बहुत सारे उपहार वस्त्र आभूषण आदि लिए और सुबह होते होते वापस हरमाड़ा गांव पहुंच गए। सुबह जब गांव वालों को पता चला कि लिछमा के धर्म के भाई आए हैं और भात भी भरेंगे तो सभी आश्चर्यचकित रह गए दोनों चौधरियों ने लिछमा को नौरंगी चुनरी उड़ाई और सभी गांव वालों को उपहार दिए और लगान की पूरी राशि का भात भर दिया इस प्रकार बहन के सम्मान की रक्षा कर दोनों भाई सारी रकम का भात भर के हाथ जोड़कर दिल्ली की ओर रवाना हो गए।
दिल्ली जाकर बादशाह को सारी कहानी बताई बादशाह ने इस बात की सत्यता की जांच करवाई और बात सही पाई तो वह बहुत खुश हुआ और दोनों को शाबाशी दी और कहा धन्य है वह मां बाप और जमीन जिसने तुम्हें जन्म दिया बादशाह ने खुश होकर उन्हें माफ किया और हजार बीघा जमीन उपहार स्वरूप दी।
इस प्रकार दोनों चौधरी 1000 बीघा जमीन के साथ साथ हजारों वर्षों के लिए अपना नाम कमा लाए
आज भी राजस्थान में बहने रक्षाबंधन और भात के गीतों में में उनके सम्मान में अपने भाई को उनके जैसा बनने के लिए कहती है
और यह पंक्तियां गाई जाती है
"बीरा तू बन जे जायल रो जाट
बनजे खियाला रो चौधरी"
दोनों चौधरी दिल्ली के सुल्तानों के लिए किसानों से लगान संग्रहण का कार्य करते थे और हर वर्ष सुल्तान के पास दिल्ली पहुंचाते थे। इस वर्ष भी दोनों चौधरी लगान की सारी रकम ऊंटों पर लादकर सुबह जल्दी जायल से दिल्ली के लिए रवाना हुए शाम होने तक दोनों जायल से लगभग 55-60 कोस दूर जयपुर के पास हरमाड़ा गांव पहुंचे दोनों बहुत थक गए थे और ऊंटों को भी आराम करवाना था इसलिए दोनों हरमाड़ा गांव की सरहद पर कुए के पास रात्रि विश्राम के लिए रुक गए।
हरमाड़ा गांव में इसके अगले दिन गुर्जर जाति की लिछमा नामक औरत की पुत्री का विवाह था लेकिन लिछमा के पीहर में उसका अपना कोई भाई बहन या परिवार वाला नहीं था इसलिए विवाह की पवित्र रस्म भात या मायरा भरने वाला कोई नहीं था। लिछमा की पुत्री के विवाह के साथ साथ उसकी देवरानी और जेठानी की पुत्रियों का भी विवाह था तो लिछमा की सास, देवरानी, जेठानी और अन्य परिवार की औरतों ने लिछमा पर तंज कसे और कहा की भात बिना कोई विवाह संपूर्ण हुआ है क्या हमारे ऐसे दुर्भाग्य है कि तेरे जैसी बहू हमारे परिवार में आई ऐसा दिन दिखाने से पहले मर क्यों नहीं गई इसी तरह सारी बातें सुनकर लिछमा के मन में मरने का ख्याल आ गया और वह पानी लाने का बहाना बनाकर कुए पर चली गई और उसी कुएं पर बैठकर जोर जोर से रोने लगी। उसी कुएं पर दोनों चौधरियों ने अपना डेरा जमा रखा था औरत के रोने की आवाज सुनकर दोनों चौधरी लिछमा के पास गए और बोले अरे बहन ऐसी कौन सी नौबत आई जो तुम इतनी रात गए कुए पर बैठकर रो रही है फिर लिछमा ने दोनों चौधरियों को अपनी पूरी कहानी सुनाई।
चौधरियों ने कहा बस इतनी सी बात और तुम जान देने चली आई आज से हम तेरे धर्म के भाई हैं तू हमारे राखी बांध और हम तेरे भात भरेंगे लिछमा थोड़ी सी विचलित हुई फिर चौधरियों ने कहा लिछमा चीर फाड़ और बांध कलाई पर कल सुबह तेरे भाई भात भरेंगे इस प्रकार चौधरियों की जबान से आश्वस्त होकर लिछमा घर चली गई।
फिर चौधरियों ने सोचा भात भरने का तो बोल दिया और पैसा कहां से लाएंगे पैसा तो सारा बादशाह का है वह भी छोटी मोटी रकम नहीं पूरी 22000 अशर्फियां और इनमें इन में हेरफेर करना अपनी मौत को बुलावा देना है लेकिन दोनों ने लिछमा को जुबान दे दी थी उन्होंने सोचा की "जुबान देकर नट जाएं, इससे अच्छा है कि कट जाएं" भात तो भरेंगे ही बादशाह जो करेगा देखा जाएगा।
दोनों जयपुर की ओर रवाना हो गए रात में ही बहुत सारे उपहार वस्त्र आभूषण आदि लिए और सुबह होते होते वापस हरमाड़ा गांव पहुंच गए। सुबह जब गांव वालों को पता चला कि लिछमा के धर्म के भाई आए हैं और भात भी भरेंगे तो सभी आश्चर्यचकित रह गए दोनों चौधरियों ने लिछमा को नौरंगी चुनरी उड़ाई और सभी गांव वालों को उपहार दिए और लगान की पूरी राशि का भात भर दिया इस प्रकार बहन के सम्मान की रक्षा कर दोनों भाई सारी रकम का भात भर के हाथ जोड़कर दिल्ली की ओर रवाना हो गए।
दिल्ली जाकर बादशाह को सारी कहानी बताई बादशाह ने इस बात की सत्यता की जांच करवाई और बात सही पाई तो वह बहुत खुश हुआ और दोनों को शाबाशी दी और कहा धन्य है वह मां बाप और जमीन जिसने तुम्हें जन्म दिया बादशाह ने खुश होकर उन्हें माफ किया और हजार बीघा जमीन उपहार स्वरूप दी।
इस प्रकार दोनों चौधरी 1000 बीघा जमीन के साथ साथ हजारों वर्षों के लिए अपना नाम कमा लाए
आज भी राजस्थान में बहने रक्षाबंधन और भात के गीतों में में उनके सम्मान में अपने भाई को उनके जैसा बनने के लिए कहती है
और यह पंक्तियां गाई जाती है
"बीरा तू बन जे जायल रो जाट
बनजे खियाला रो चौधरी"
बढ़िया
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